Saturday, May 7, 2011

देखा मौसम के रुख को

देखा मौसम के रुख को बदलते हुए,
तेरी आहट को लहरों में ढलते हुए,
चलकर तन्हा अमावस की आगोश से,
चाँद चाहत का मेरी निकलते हुए।

भीगी आँखें छलकते ये आंसू कहें,
रहा शब भर तेरा इन्तजार मुझे,
जैसे रिमझिम बरसता हो सावन कहीं,
रहता आने का तेरे खुमार मुझे।
दिल यह कहता तसव्वुर मे ऐ हमनिशीं,
थाम लोगे मुझे तुम बहलते हुए।

सूनी राहों में खोया था जो हमसफर,
साथ तेरा यह छेड़े  तराना कोई,
दिल की नदियां हसीं वादियों को चलीं,
मिल गया जिन्दगी को बहाना कोई।
मद से आंखों की मदहोश होने लगे,
डगमगाते रहे हम सम्भलते हुए।

गुफतगू में तेरी जन्नत की सदा,
हाथों में है मुकद्दर की परछाईयां,
होठों पर है खिली सुर्ख गुल की अदा,
ले रही सूने दिल में ये अंगड़ाईयां।
जल गए तेरे दामन को छू कर 'अनीस',
बे-खुदी में आंगारों पर चलते हुए।
देखा मौसम के रुख को बदलते हुए,
तेरी आहट को लहरों में ढलते हुए।

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