Saturday, May 7, 2011

उसने जब मेरा ज़िक्र

उसने जब मेरा ज़िक्र, बहती हवाओं में किया होगा,
सरसराहट ने उसे, मेरा पता खुल कर दिया होगा।

मयकशी तीर निगाहों से भरी कातिल अदा,
जख्मे खंजर मेरे दिल को, निशाना तो किया होगा।

जाम-ए-तन्हाई नहीं देता, शबे गम को सदा,
उसने महफिल में मेरा नाम, चुपके से लिया होगा।

रोज आती है अजल-ए-गुरबत, रफ्ता रफ्ता,
ताज़् उल्फत में हसीं खाब, कभी उसने लिया होगा।

लब पै  आकर क्यों अदम होता, यह अजल का सफर,
कुछ दुआओं का असर पाकर, वो फिर से जीया होगा।

बहते आंसू न बदल पाए, तव्वसुम में खलिश,
भीगी आँखों में छलकता कोई गमे-दरिया होगा।

वादा करते हैं, नहीं दिल से निभाते वो कभी,
शोख चेहरे की झलक पाने का, कुछ तो जरिया होगा।

बन के रह जाए न अफसाना, यह मोहब्बत का सफर,
हर जुबां को भी 'अनीस',  अपने होठों में सीया होगा।
उसने जब मेरा ज़िक्र बहती हवाओं में किया होगा।

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