Saturday, May 7, 2011

उसने जब मेरा ज़िक्र

उसने जब मेरा ज़िक्र, बहती हवाओं में किया होगा,
सरसराहट ने उसे, मेरा पता खुल कर दिया होगा।

मयकशी तीर निगाहों से भरी कातिल अदा,
जख्मे खंजर मेरे दिल को, निशाना तो किया होगा।

जाम-ए-तन्हाई नहीं देता, शबे गम को सदा,
उसने महफिल में मेरा नाम, चुपके से लिया होगा।

रोज आती है अजल-ए-गुरबत, रफ्ता रफ्ता,
ताज़् उल्फत में हसीं खाब, कभी उसने लिया होगा।

लब पै  आकर क्यों अदम होता, यह अजल का सफर,
कुछ दुआओं का असर पाकर, वो फिर से जीया होगा।

बहते आंसू न बदल पाए, तव्वसुम में खलिश,
भीगी आँखों में छलकता कोई गमे-दरिया होगा।

वादा करते हैं, नहीं दिल से निभाते वो कभी,
शोख चेहरे की झलक पाने का, कुछ तो जरिया होगा।

बन के रह जाए न अफसाना, यह मोहब्बत का सफर,
हर जुबां को भी 'अनीस',  अपने होठों में सीया होगा।
उसने जब मेरा ज़िक्र बहती हवाओं में किया होगा।

शायरो-शायरी-1

सुनो अरमान जो मचले, निगाहों को छुपा लोगी,
'अनीस' इस हाल में कैसे, तू दिल से यूँ निकालोगी।

तेरी शबनम सी आंखों में, मेरी मय के प्याले हैं,
छलकते जाम से भर कर, तू कब सीने में डालोगी।

मनवा के मचलने से, दिखाती क्यों है तू आँखें,
अगर तू खूबसूरत है, झुकाती क्यों है तू आँखें।

चलो दिल की तसल्ली वास्ते, पलकें उठा लो तुम,
'अनीस' जीने की राह दे दो, रुलाती क्यों है तू आँखें।

यहां झीलों की मस्ती है, वहां मस्ती के मारे हैं,
यहां खुल कर मैं हँसती हूं, वहां हँसने को दायरे हैं।

मैं छूकर हाथ को 'अनीस', नया अहसास दे दूंगी,
जो न समझो तो बातें है, जो समझो तो इशारे हैं।

मुकद्दर एक जैसा तो, कभी होता नहीं सबका,
मुहब्बत में बिखर कर दिल, कभी खोता नहीं सबका।

तेरी खामोशियां 'अनीस', कहां तक देख पाता है,
जरा सी आँख भर ली तो, यह दिल रोता नहीं सबका।

मोहब्बत का समुंदर तू, बहा ले प्यार में किश्ती,
तुम्हे पाने की हसरत में, खोई मझधार में किश्ती।

इश्क में डूब जाने का, 'अनीस' को गम नहीं होगा,
अगर दिल से सम्भालोगी, लगेगी पार में किश्ती।

खुली आँखों में यह मदिरा, तेरी मुसकान है साकी,
मगर मदहोश करने को, अभी नादान है साकी।

तेरी दिलकश अदाओं को, अभी कमसिन मैं कहता हूं,
'अनीस' भी क्यों मचलता है, शमा अन्जान है साकी।

भंवरा फूल की मस्ती में, खोया गुनगुनाता है,
यह मौसम की है न समझी, जो फूलों को लुभाता है।

'अनीस' यह रस चखा है, चाहतों की कम ख्याली में,
सिमट कर पंखुड़ी में यह, कभी खुद को मिटाता है।

जरा जुल्फों को चेहरे से, हटाले हुस्न की मल्लिका,
नजर के तीर को सीधा, कराले हुस्न की मल्लिका।

तेरे कदमों में गश खा कर ही, गिरने की तमन्ना है,
'अनीस' बाहों में अपनी तू, उठा ले हुस्न की मल्लिका।

पहली मुलाकात

याद है मुझको हमारी, पहली मुलाकात  वो,
अजनबी सी थी हमारे, बीच की हर बात वो।

न गुफतगू, न आरजू के, लम्हों ने शुरुआत की,
बस दबी सी मुस्कुराहट में, नजर को मात दी।
वक्त चलते थम गये थे, उठ रहे जजबात वो,
अजनबी सी थी हमारे, बीच की हर बात वो।

यूँ लगा परछाई बनकर, साथ वो चलने लगी,
मेरे नगमों में सुरों के, साथ वो ढलने लगी।
सिलसिले फिर दे गएं हों, वक्त को भी मात वो,
अजनबी  सी थी हमारे, बीच की हर बात वो।

कोई कैसे, कब 'अनीस' क्यों करे इन्तज़ार भी,
तकरार में इन्कार भी है, दिल से यूँ इजहार भी।
खुशनसीबी हुई मुबारक, चाँदनी की रात वो,
अजनबी सी थी हमारे, बीच की हर बात वो।

अधूरा इन्साफ कचहरी में

कचहरी का खामोश नज़ारा,
इन्तजार करे जज का इशारा,
वर्षों से यह लटका केस,
नहीं हुआ निपटारा।

बाहर झुरमुट कान किए,
हाथों में दस्तावेज लिए,
फिर भागे वकील ढूंढने,
भीड़ पर नजरें किए।

शायद अब हो जाए फैसला,
जो लटका है सालों से,
घिरा ही रहता हूं वरना,
मैं रोज नए सवालों से।

किसी के चेहरे पर खुशी,
तो किसी पर गम लटके,
मुद्दतों से वो ही फैसला,
हो रहा जो फिर भटके।

नहीं जला अरमानों का,
सुलगा हुआ चिराग कोई,
वक्त का दुश्मन फिर दे गया,
दिल में जैसे आग कोई।

ऐसा होना था तो क्यों है,
यह इन्साफ अदालत का,
बेहतर होता यही फैसला,
सुथरा साफ अदालत का।

कौन कहे इस मुलक में,
आज़ाद घूम रहे हैं हम,
खुदवा कर तकदीर लकीरें,
बर्बाद घूम रहे हैं हम।

चलो यहां अब इस जहां को,
नया कुछ करके दिखाएं,
वतन के हम रखवालों को,
नमन करें और शीश झुकाएं।

करें जागरूक 'अनीस' मिलकर,
उभरते कण आवाम में,
बुलन्द आवाज में भरें चेतना,
इन्साफ के पैगाम में।

देखा मौसम के रुख को

देखा मौसम के रुख को बदलते हुए,
तेरी आहट को लहरों में ढलते हुए,
चलकर तन्हा अमावस की आगोश से,
चाँद चाहत का मेरी निकलते हुए।

भीगी आँखें छलकते ये आंसू कहें,
रहा शब भर तेरा इन्तजार मुझे,
जैसे रिमझिम बरसता हो सावन कहीं,
रहता आने का तेरे खुमार मुझे।
दिल यह कहता तसव्वुर मे ऐ हमनिशीं,
थाम लोगे मुझे तुम बहलते हुए।

सूनी राहों में खोया था जो हमसफर,
साथ तेरा यह छेड़े  तराना कोई,
दिल की नदियां हसीं वादियों को चलीं,
मिल गया जिन्दगी को बहाना कोई।
मद से आंखों की मदहोश होने लगे,
डगमगाते रहे हम सम्भलते हुए।

गुफतगू में तेरी जन्नत की सदा,
हाथों में है मुकद्दर की परछाईयां,
होठों पर है खिली सुर्ख गुल की अदा,
ले रही सूने दिल में ये अंगड़ाईयां।
जल गए तेरे दामन को छू कर 'अनीस',
बे-खुदी में आंगारों पर चलते हुए।
देखा मौसम के रुख को बदलते हुए,
तेरी आहट को लहरों में ढलते हुए।

Sunday, April 24, 2011

कतरा-कतरा खून शहादत

पराधीनता के पिंजरे को, तोड़कर दिलशाद हुए,
कतरा-कतरा खून शहादत, देकर हम आजाद हुए।

नेहरु, गाँधी, लाज, भग्त सिंह, आजादी के परवाने,
चन्द्र, बोस के वीर सेनानी, भारत मां के दीवाने।
भीम राव की कलम से उभरे, गणतन्त्र आबाद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत, देकर हम आजाद हुए।

तीन रंग का यह तिरंगा, तीन लोक की लाज है,
भारत माता के रखवालो,  हम को तुम पर नाज़  है।
पीकर जाम शहादत वाला, तुम जंगे उस्ताद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत, देकर हम आजाद हुए।

टुकड़े करके चले फिरंगी, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,
लूट लिए अनमोल खजाने, छोड़ गए हिन्द-पाक लड़ाई।
कुर्बानी की आग में तपकर, फिर भी हम फौलाद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत देकर हम आजाद हुए।

लोकतन्त्र को यह गणतन्त्र, दे रहा है शुभ सन्देश,
भारत माता के आँचल में, खुशियां महके अपना देश।
बुरी नजर से तकने वाले, सब दुश्मन बर्बाद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत,  देकर हम आजाद हुए।

ऐ वतन हमको कसम है, तेरी शान बढ़ाएंगे,
ऐसे शुभ अवसर पै तिरंगा, ऊँचा हम फहराएंगे।
दे सबको 'अनीस मुबारक, युग पुरुषोतम याद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत देकर हम आजाद हुए।

मुलाकात की चाहत

दिल के आईने में बसी, मेरे ख्वाबों की तस्वीर है,
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

तड़प है मिलने की दिल में, मदभरी उमंग है,
लगता है जाने क्यों जैसे, उम्र भर का संग है।
कायल मृगनयनी हुई यह, मिलन की तासीर है।
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

सरकता आँचल हवा के, संग  लहराता हुआ,
छू कर दामन को मचलता, जाए बल खाता हुआ।
बहता जाए लहरें बन कर, मन भी कैसा नीर है।
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

कल सुबह मंज़िल   की चाहत, में नया खुमार है,
आज तन्हा रात बे-बस, हो चुकी लाचार है।
किस्सा सदियों का 'अनीस, वो मेरी दिलगीर है।
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

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