सुनो अरमान जो मचले, निगाहों को छुपा लोगी,
'अनीस' इस हाल में कैसे, तू दिल से यूँ निकालोगी।
तेरी शबनम सी आंखों में, मेरी मय के प्याले हैं,
छलकते जाम से भर कर, तू कब सीने में डालोगी।
मनवा के मचलने से, दिखाती क्यों है तू आँखें,
अगर तू खूबसूरत है, झुकाती क्यों है तू आँखें।
चलो दिल की तसल्ली वास्ते, पलकें उठा लो तुम,
'अनीस' जीने की राह दे दो, रुलाती क्यों है तू आँखें।
यहां झीलों की मस्ती है, वहां मस्ती के मारे हैं,
यहां खुल कर मैं हँसती हूं, वहां हँसने को दायरे हैं।
मैं छूकर हाथ को 'अनीस', नया अहसास दे दूंगी,
जो न समझो तो बातें है, जो समझो तो इशारे हैं।
मुकद्दर एक जैसा तो, कभी होता नहीं सबका,
मुहब्बत में बिखर कर दिल, कभी खोता नहीं सबका।
तेरी खामोशियां 'अनीस', कहां तक देख पाता है,
जरा सी आँख भर ली तो, यह दिल रोता नहीं सबका।
मोहब्बत का समुंदर तू, बहा ले प्यार में किश्ती,
तुम्हे पाने की हसरत में, खोई मझधार में किश्ती।
इश्क में डूब जाने का, 'अनीस' को गम नहीं होगा,
अगर दिल से सम्भालोगी, लगेगी पार में किश्ती।
खुली आँखों में यह मदिरा, तेरी मुसकान है साकी,
मगर मदहोश करने को, अभी नादान है साकी।
तेरी दिलकश अदाओं को, अभी कमसिन मैं कहता हूं,
'अनीस' भी क्यों मचलता है, शमा अन्जान है साकी।
भंवरा फूल की मस्ती में, खोया गुनगुनाता है,
यह मौसम की है न समझी, जो फूलों को लुभाता है।
'अनीस' यह रस चखा है, चाहतों की कम ख्याली में,
सिमट कर पंखुड़ी में यह, कभी खुद को मिटाता है।
जरा जुल्फों को चेहरे से, हटाले हुस्न की मल्लिका,
नजर के तीर को सीधा, कराले हुस्न की मल्लिका।
तेरे कदमों में गश खा कर ही, गिरने की तमन्ना है,
'अनीस' बाहों में अपनी तू, उठा ले हुस्न की मल्लिका।
'अनीस' इस हाल में कैसे, तू दिल से यूँ निकालोगी।
तेरी शबनम सी आंखों में, मेरी मय के प्याले हैं,
छलकते जाम से भर कर, तू कब सीने में डालोगी।
मनवा के मचलने से, दिखाती क्यों है तू आँखें,
अगर तू खूबसूरत है, झुकाती क्यों है तू आँखें।
चलो दिल की तसल्ली वास्ते, पलकें उठा लो तुम,
'अनीस' जीने की राह दे दो, रुलाती क्यों है तू आँखें।
यहां झीलों की मस्ती है, वहां मस्ती के मारे हैं,
यहां खुल कर मैं हँसती हूं, वहां हँसने को दायरे हैं।
मैं छूकर हाथ को 'अनीस', नया अहसास दे दूंगी,
जो न समझो तो बातें है, जो समझो तो इशारे हैं।
मुकद्दर एक जैसा तो, कभी होता नहीं सबका,
मुहब्बत में बिखर कर दिल, कभी खोता नहीं सबका।
तेरी खामोशियां 'अनीस', कहां तक देख पाता है,
जरा सी आँख भर ली तो, यह दिल रोता नहीं सबका।
मोहब्बत का समुंदर तू, बहा ले प्यार में किश्ती,
तुम्हे पाने की हसरत में, खोई मझधार में किश्ती।
इश्क में डूब जाने का, 'अनीस' को गम नहीं होगा,
अगर दिल से सम्भालोगी, लगेगी पार में किश्ती।
खुली आँखों में यह मदिरा, तेरी मुसकान है साकी,
मगर मदहोश करने को, अभी नादान है साकी।
तेरी दिलकश अदाओं को, अभी कमसिन मैं कहता हूं,
'अनीस' भी क्यों मचलता है, शमा अन्जान है साकी।
भंवरा फूल की मस्ती में, खोया गुनगुनाता है,
यह मौसम की है न समझी, जो फूलों को लुभाता है।
'अनीस' यह रस चखा है, चाहतों की कम ख्याली में,
सिमट कर पंखुड़ी में यह, कभी खुद को मिटाता है।
जरा जुल्फों को चेहरे से, हटाले हुस्न की मल्लिका,
नजर के तीर को सीधा, कराले हुस्न की मल्लिका।
तेरे कदमों में गश खा कर ही, गिरने की तमन्ना है,
'अनीस' बाहों में अपनी तू, उठा ले हुस्न की मल्लिका।
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