Sunday, April 24, 2011

कतरा-कतरा खून शहादत

पराधीनता के पिंजरे को, तोड़कर दिलशाद हुए,
कतरा-कतरा खून शहादत, देकर हम आजाद हुए।

नेहरु, गाँधी, लाज, भग्त सिंह, आजादी के परवाने,
चन्द्र, बोस के वीर सेनानी, भारत मां के दीवाने।
भीम राव की कलम से उभरे, गणतन्त्र आबाद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत, देकर हम आजाद हुए।

तीन रंग का यह तिरंगा, तीन लोक की लाज है,
भारत माता के रखवालो,  हम को तुम पर नाज़  है।
पीकर जाम शहादत वाला, तुम जंगे उस्ताद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत, देकर हम आजाद हुए।

टुकड़े करके चले फिरंगी, हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई,
लूट लिए अनमोल खजाने, छोड़ गए हिन्द-पाक लड़ाई।
कुर्बानी की आग में तपकर, फिर भी हम फौलाद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत देकर हम आजाद हुए।

लोकतन्त्र को यह गणतन्त्र, दे रहा है शुभ सन्देश,
भारत माता के आँचल में, खुशियां महके अपना देश।
बुरी नजर से तकने वाले, सब दुश्मन बर्बाद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत,  देकर हम आजाद हुए।

ऐ वतन हमको कसम है, तेरी शान बढ़ाएंगे,
ऐसे शुभ अवसर पै तिरंगा, ऊँचा हम फहराएंगे।
दे सबको 'अनीस मुबारक, युग पुरुषोतम याद हुए।
कतरा-कतरा खून शहादत देकर हम आजाद हुए।

मुलाकात की चाहत

दिल के आईने में बसी, मेरे ख्वाबों की तस्वीर है,
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

तड़प है मिलने की दिल में, मदभरी उमंग है,
लगता है जाने क्यों जैसे, उम्र भर का संग है।
कायल मृगनयनी हुई यह, मिलन की तासीर है।
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

सरकता आँचल हवा के, संग  लहराता हुआ,
छू कर दामन को मचलता, जाए बल खाता हुआ।
बहता जाए लहरें बन कर, मन भी कैसा नीर है।
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

कल सुबह मंज़िल   की चाहत, में नया खुमार है,
आज तन्हा रात बे-बस, हो चुकी लाचार है।
किस्सा सदियों का 'अनीस, वो मेरी दिलगीर है।
हाथ की रेखा में उभरी, वो मेरी तकदीर है।

Tuesday, April 19, 2011

फिर तेरा हसीं ख्याल आया

आज फिर दिल ने कोई नगमा सुनाया,
आज फिर तेरा हसीं ख्याल आया।

मन की पवन बन तेरी वफा ने,
भर डाले रंग सब मेरी खिज़ा में,
बहारों ने मेरा गुलशन सजाया,
आज फिर तेरा हसीं ख्याल आया।

उठे हाथ मेरे न कभी दुआ से,
मांगूं भी क्या और अब मैं खुदा से,
पा कर तुझे मैंने सब कुछ है पाया,
आज फिर तेरा हसीं ख्याल आया।

तमन्ना का मेरी सितारा है तू,
जीने का मेरे सहारा है तू,
जिन्दगी को तूने ही जन्नत बनाया,
आज फिर तेरा हसीं ख्याल आया।

मुलाकात ‘अनीस’ बन कर सवेरा,
मेरे ख्यालों में  करती बसेरा,
शाम के पहलू को तूने सजाया,
आज फिर तेरा हसीं ख्याल आया।

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